Tuesday, October 26, 2010

प्रात: कालीन विचार

मैं सोयी थी , घनी निद्रा में खोयी थी ,
आने वाले कल के मीठे सपनो में कोई थी ,
किन्तु धीरे धीरे रात्रि प्रहर समाप्त हो रहा था .
निशा जा रही थी , उषा आ रही थी
ये समय निशा और उषा के मधुर मिलन का था ,
जिससे अम्बर को भी एक अनोखा लावान्य प्राप्त था .
अनायास ही चंद सूर्य किरने खिड़की से चिटक कर,
मुख मंडल पर पड़ने लगी ,जो की मुस्कुराते हुई कह रहे थे
जाग जा मुसाफिर एक नए दिन की शुरुवात कर
उठो ,चैतन्य भवो ,ओर कर्म करने को तत्पर हो जाओ .
एक नया दिन समीप है ,उसकी नयी शुरुवात करो
नए लक्ष्य ले कर आगे बढ़ो और उन्नति प्राप्त करो,
निशा जा चुकी है ,उषा आ चुकी है ....