कभी यूँ भी तो हो,
बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!
कभी यूँ भी तो हो,
नींद की जब विदाई हो,
सबेरा कुछ और सुहाना सा हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
आसमान कुछ और आसमानी सा हो,
सूरज कुछ और रोशन सा हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
मौसम कुछ दीवाना सा हो,
फिजाओं में कुछ अनजानी महक सी हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!
बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!
कभी यूँ भी तो हो,
नींद की जब विदाई हो,
सबेरा कुछ और सुहाना सा हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
आसमान कुछ और आसमानी सा हो,
सूरज कुछ और रोशन सा हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
मौसम कुछ दीवाना सा हो,
फिजाओं में कुछ अनजानी महक सी हो!!
कभी यूँ भी तो हो,
बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!