Sunday, December 4, 2011

क्या मैंने चाहा और क्या पा लिया?


मन के कुछ भावों में से एक ये भी है,एक लड़की के मन में उठने वाली दुविधा को मैंने शब्द देने का प्रयास कर रही हूँ----
 
क्या मैंने चाहा और क्या पा लिया?
खुदा से दुआओं में तुमको माँगा,
मेरी दुआओं में रंग आया,
और जिंदगी में पाया तुमको!!
अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाया तुमको,
पर तुमने सदैव वसुधेव कुटुम्बकम का राग आलापा,
वक्त ने कैसे दोराहे पे किया खड़ा,
तुममे अपनी खुशियाँ धुंडू या तुम्हारी खुशियों को अपना मानूँ,
तुम्हारे लिए सबकुछ छोड़ा,
पर तुमको कैसे छोडूँ?
इतनी निस्वार्थी कैसे बनूँ!!
तुमको छोड़ नहीं सकती,
तुम्हारी खुशियों को अपना नहीं सकती,
तो सोचने पे मजबूर हूँ,
क्या मैंने चाह और क्या पा लिया ?