यूँ तो ऐसा है की लिखना मेरा काम नहीं, बस कभी कुछ हलचल सी हो जाती है दिमाग में ,जो की मजबूर कर देते है कागज के टुकड़े और कलम हाथ में लेने को, बस अचानक जो ख्याल सा आ जाता है और वो कलम पकडाए बिना फिर छोड़ता नहीं बस उन्ही को शब्दों का रूप देने का प्रयास करती हूँ. या फिर कह सकते हैं अपने मन की उलझन को सुलझाने का प्रयास....देखें ये प्रयास कहाँ तक जारी रहता है...आप सभी के सहयोग की आकांक्षा में, आपकी सेवा में प्रस्तुत.....