क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं ?
क्या इसलिए डरूं?कि मै एक लडकी हूँ,
लेकिन मै न कभी डरी आजतक और न कभी आगे डरूं,
जब आजतक न पाया अंतर कोई तो आगे आने वाले अंतरों से क्यूँ डरूं?
क्यूँ न इतनी सामर्थ्यवान बनूँ,
कि समाज को बदलूँ,
मै बदलूँ और सब कुछ बदल डालूं,
आखिर कौन सी ऐसी कमी मुझ में जो मै डरूं,
क्यूँ न पहुचुं उस ऊंचाई तक ,जहाँ न पहुंचे कभी कोई ,
बादलों तक उड़ जाऊ और आसमान को छु लूँ,
क्या इसलिए डरूं ?
कि मै एक लडकी हूँ,
पर मै न कभी डरूं
क्यूँ कि जो डरे वो न कभी आगे बढे,
पर मै तो हमेशा उन्नति पथ पर चलूँ,
तो क्यूँ न उड़ चलूँ,
आगे बढ़ने का अरमान लिए,
क्यूँ कि रुकना मेरा काम नहीं,
और डरना मेरे पहचान नहीं ,
क्यूँ साहिल के सुकून का इंतजार करूँ,
क्यूँ न समंदर से कश्तियाँ निकलने का मजा लूँ !!
जो की फितरत है मेरी, क्यूँ न इसको कायम रखूं !!
मै बदलूं और समाज को बदल डालूं ,
आखिर क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं !!
क्या इसलिए डरूं?कि मै एक लडकी हूँ,
लेकिन मै न कभी डरी आजतक और न कभी आगे डरूं,
जब आजतक न पाया अंतर कोई तो आगे आने वाले अंतरों से क्यूँ डरूं?
क्यूँ न इतनी सामर्थ्यवान बनूँ,
कि समाज को बदलूँ,
मै बदलूँ और सब कुछ बदल डालूं,
आखिर कौन सी ऐसी कमी मुझ में जो मै डरूं,
क्यूँ न पहुचुं उस ऊंचाई तक ,जहाँ न पहुंचे कभी कोई ,
बादलों तक उड़ जाऊ और आसमान को छु लूँ,
क्या इसलिए डरूं ?
कि मै एक लडकी हूँ,
पर मै न कभी डरूं
क्यूँ कि जो डरे वो न कभी आगे बढे,
पर मै तो हमेशा उन्नति पथ पर चलूँ,
तो क्यूँ न उड़ चलूँ,
आगे बढ़ने का अरमान लिए,
क्यूँ कि रुकना मेरा काम नहीं,
और डरना मेरे पहचान नहीं ,
क्यूँ साहिल के सुकून का इंतजार करूँ,
क्यूँ न समंदर से कश्तियाँ निकलने का मजा लूँ !!
जो की फितरत है मेरी, क्यूँ न इसको कायम रखूं !!
मै बदलूं और समाज को बदल डालूं ,
आखिर क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं !!
सोचने को मजबूर करती है आपकी यह रचना !
ReplyDeleteसार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
लड़की की दास्तान....संजय भास्कर
ReplyDeleteइसी पर मैंने भी कविता लिखी है उम्मीद है पसंद aayege