क्या लिखूं?
सच लिखूं या झूठ का साज सुनाऊं!!
अपने मन का भाव सुनाऊं या चुप रहूँ,
दुनिया को देखूं और दिखाऊं!!
क्या समझूं ?
उसको बाचूँ जो दिखता है,या उसको समझूँ जो समझाया जाता है1
दुनिया को देखूं, और अलग-अलग बातें सीखूं !!
क्या बताऊ?
अपनी झूटी खुशियाँ दिखलाऊं,
और दुःख का भाव छुपाऊं!!
और क्यूँ न इन सब से अच्छा करूँ?
क्यूँ न चुप रहूँ !!
इस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!
सबकुछ छुपाऊं,
और हंस कर अपना नाम सार्थक करूँ !!
-हर्षिता
सच लिखूं या झूठ का साज सुनाऊं!!
अपने मन का भाव सुनाऊं या चुप रहूँ,
दुनिया को देखूं और दिखाऊं!!
क्या समझूं ?
उसको बाचूँ जो दिखता है,या उसको समझूँ जो समझाया जाता है1
दुनिया को देखूं, और अलग-अलग बातें सीखूं !!
क्या बताऊ?
अपनी झूटी खुशियाँ दिखलाऊं,
और दुःख का भाव छुपाऊं!!
और क्यूँ न इन सब से अच्छा करूँ?
क्यूँ न चुप रहूँ !!
इस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!
सबकुछ छुपाऊं,
और हंस कर अपना नाम सार्थक करूँ !!
-हर्षिता
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (26.02.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.uchcharan.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
सुंदर कविता...सुंदर विचार !
ReplyDeleteEr. सत्यम शिवम जी,
ReplyDeleteमेरी रचना को पसन्द करने के लिए आभारी हूं।
मेरी रचना को चर्चा मंच में शामिल करने के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!
SHANDAAR ...........RACHNAA
ReplyDeleteइस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ReplyDeleteख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!
मनोभावों को खूबसूरती से पिरोया है। बधाई।
मन की उलझन को बखूबी बहुत ही खूबसूरत अभिव्यक्ति दी है ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण रचना ! बधाई एवं शुभकामनायें !
ReplyDeleteman ki uljhan kee khoobsoorat abhivyakti..
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