मैं छोटी थी ,
मा के आँचल में सोती थी, पापा की गोद में खेलती थी,
खिलोनो के लिये रोती थी,
और दो मिनट में सबकुछ अपने पास पाती थी!!
मैं क्या चाहती हूँ शायद ये जानती थी ,
नासमझ होते हुये भी खुद को जानती थी,
और अब दुनिया की नज़रों में समझदार होते हुई भी खुद से अनजान
जो की अनजान है अपने आप से, अपने विचारों से !!
तो सोचती हूँ अच्छा क्या?
नासमझ होना या फिर समझदार होना,
पर लगता है नासमझ होना ज्यादा अच्छा !!!
commendable composition.....:)
ReplyDeletekya likhti hai.....mast....:)
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