क्या लिखूं?
सच लिखूं या झूठ का साज सुनाऊं!!
अपने मन का भाव सुनाऊं या चुप रहूँ,
दुनिया को देखूं और दिखाऊं!!
क्या समझूं ?
उसको बाचूँ जो दिखता है,या उसको समझूँ जो समझाया जाता है1
दुनिया को देखूं, और अलग-अलग बातें सीखूं !!
क्या बताऊ?
अपनी झूटी खुशियाँ दिखलाऊं,
और दुःख का भाव छुपाऊं!!
और क्यूँ न इन सब से अच्छा करूँ?
क्यूँ न चुप रहूँ !!
इस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!
सबकुछ छुपाऊं,
और हंस कर अपना नाम सार्थक करूँ !!
-हर्षिता
सच लिखूं या झूठ का साज सुनाऊं!!
अपने मन का भाव सुनाऊं या चुप रहूँ,
दुनिया को देखूं और दिखाऊं!!
क्या समझूं ?
उसको बाचूँ जो दिखता है,या उसको समझूँ जो समझाया जाता है1
दुनिया को देखूं, और अलग-अलग बातें सीखूं !!
क्या बताऊ?
अपनी झूटी खुशियाँ दिखलाऊं,
और दुःख का भाव छुपाऊं!!
और क्यूँ न इन सब से अच्छा करूँ?
क्यूँ न चुप रहूँ !!
इस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!
सबकुछ छुपाऊं,
और हंस कर अपना नाम सार्थक करूँ !!
-हर्षिता