इस रंग बदलती दुनिया के रंग कई ,
पर सब की एक धरती और आसमान एक वही ,
ये आसमान रंग बदला अनेक !!!
कभी सुर्ख नीला सा प्यारा ,तो कभी ढका हुआ बादलों में कई ,
कभी देता सूर्य की रोशनी प्यारी ,
तो कभी बरसा देता चाँद की चांदनी न्यारी!!
कभी तारों से भरा देता खुशियाँ कई ,
और जब ढक लेते तारों को बदल कई,
तो देता कालिमा गहरी !!
इन सब के बीच आसमान की ओर टकटकी लगाए ,
बैठे रहते मनुष्य रूपी चातक कई !!
जो की इंतजार में है की तारा टूटे कोई,
ओर कामना पूरी करे उनकी कई!!
पर वो क्या कामना पूरी करे कोई,
जो खुद ही आये दुनिया में नई,
छोड़कर अपनी खुशियाँ कई!!
उसे भी तो होते होंगे दर्द कई,
जब वो छोड़कर आये दुनिया अपनी,
जहाँ उसके इंतजार में बैठे होंगे उसके अपने कई !!
फिर भी हम इंतजार में बैठे रहे कहीं ,
कि टूटेगा तारा कोई !!
लगता तो ये इंतजार उचित नहीं,
परन्तु हम असमर्थ है कर सकने में कुछ कहीं,
क्यूँ कि तारे को टूटना ही होगा कहीं न कहीं !!
ये तो प्यारे विधान है विधि का जरुरी,
कि तारा टूटेगा जरुर कहीं न कहीं !!
यूँ तो ऐसा है की लिखना मेरा काम नहीं, बस कभी कुछ हलचल सी हो जाती है दिमाग में ,जो की मजबूर कर देते है कागज के टुकड़े और कलम हाथ में लेने को, बस अचानक जो ख्याल सा आ जाता है और वो कलम पकडाए बिना फिर छोड़ता नहीं बस उन्ही को शब्दों का रूप देने का प्रयास करती हूँ. या फिर कह सकते हैं अपने मन की उलझन को सुलझाने का प्रयास....देखें ये प्रयास कहाँ तक जारी रहता है...आप सभी के सहयोग की आकांक्षा में, आपकी सेवा में प्रस्तुत.....
Friday, January 21, 2011
Wednesday, January 19, 2011
कुछ विचार
मैं छोटी थी ,
मा के आँचल में सोती थी, पापा की गोद में खेलती थी,
खिलोनो के लिये रोती थी,
और दो मिनट में सबकुछ अपने पास पाती थी!!
मैं क्या चाहती हूँ शायद ये जानती थी ,
नासमझ होते हुये भी खुद को जानती थी,
और अब दुनिया की नज़रों में समझदार होते हुई भी खुद से अनजान
जो की अनजान है अपने आप से, अपने विचारों से !!
तो सोचती हूँ अच्छा क्या?
नासमझ होना या फिर समझदार होना,
पर लगता है नासमझ होना ज्यादा अच्छा !!!
मा के आँचल में सोती थी, पापा की गोद में खेलती थी,
खिलोनो के लिये रोती थी,
और दो मिनट में सबकुछ अपने पास पाती थी!!
मैं क्या चाहती हूँ शायद ये जानती थी ,
नासमझ होते हुये भी खुद को जानती थी,
और अब दुनिया की नज़रों में समझदार होते हुई भी खुद से अनजान
जो की अनजान है अपने आप से, अपने विचारों से !!
तो सोचती हूँ अच्छा क्या?
नासमझ होना या फिर समझदार होना,
पर लगता है नासमझ होना ज्यादा अच्छा !!!
Monday, January 10, 2011
स्वतन्त्रत
गुजर गये है छ दशक स्वतन्त्रता प्राप्त किये,
हम स्वतन्त्रत है??
पर क्या हम वास्तव मै स्वतन्त्रत है????
हम स्वतन्त्रत है??
पर क्या हम वास्तव मै स्वतन्त्रत है????
नही हम स्वतन्त्रत नही है.
स्वतन्त्रता का झुटा दिखावा करते है.
सही मायनो मे स्वतन्त्रत तो ये पक्षी है.
सही मायनो मे स्वतन्त्रत तो ये पक्षी है.
जिन्हे कोई सरहद रोक नही पाती.
हम तो बस स्वतन्त्रता का दिखावा करते है!!!
हम तो बस स्वतन्त्रता का दिखावा करते है!!!
बडी बडी बाते करते है, वाद विवाद करते है.
पर हम सब आज भी परतन्त्र है.
पर हम सब आज भी परतन्त्र है.
हम छुना चाहते है खुले आसमान को ,
पर क्या छु सकते है, नही ना..
ऐसी ही हजारो ख्वाहिशे हर रोज किसे के अन्दर दम तोडती है
पर कभी पूरी नही हो पाती,क्यौकी हम परतन्त्र है..
ये परतन्त्रता सामने आती है
कभी किसी बन्धन के रूप मे, तो कभी पैरो मे पडी बेडियो के रूप मे,
पर क्या छु सकते है, नही ना..
ऐसी ही हजारो ख्वाहिशे हर रोज किसे के अन्दर दम तोडती है
पर कभी पूरी नही हो पाती,क्यौकी हम परतन्त्र है..
ये परतन्त्रता सामने आती है
कभी किसी बन्धन के रूप मे, तो कभी पैरो मे पडी बेडियो के रूप मे,
या फिर कभी किसी बडे के लिहाज के रूप मे, या फिर किसी को दिये वचन के रूप मे,
तो हम कैसे स्वतन्त्रत हो सकते है!!!
तो हम कैसे स्वतन्त्रत हो सकते है!!!
हम तो बस स्वतन्त्रता का दिखावा करते है,
कि हम स्वतन्त्रत है.
किन्तु परतन्त्र होने मे योगदान किसका है?
कि हम स्वतन्त्रत है.
किन्तु परतन्त्र होने मे योगदान किसका है?
मेरा खुद का, या मेरी आकन्क्षाओ का??
शायद मेरा ही होगा......
शायद मेरा ही होगा......
फिर भी मान लेते है कि हम स्वतन्त्रत है!!!!!
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