Sunday, December 4, 2011

क्या मैंने चाहा और क्या पा लिया?


मन के कुछ भावों में से एक ये भी है,एक लड़की के मन में उठने वाली दुविधा को मैंने शब्द देने का प्रयास कर रही हूँ----
 
क्या मैंने चाहा और क्या पा लिया?
खुदा से दुआओं में तुमको माँगा,
मेरी दुआओं में रंग आया,
और जिंदगी में पाया तुमको!!
अपने जीवन का केंद्र बिंदु बनाया तुमको,
पर तुमने सदैव वसुधेव कुटुम्बकम का राग आलापा,
वक्त ने कैसे दोराहे पे किया खड़ा,
तुममे अपनी खुशियाँ धुंडू या तुम्हारी खुशियों को अपना मानूँ,
तुम्हारे लिए सबकुछ छोड़ा,
पर तुमको कैसे छोडूँ?
इतनी निस्वार्थी कैसे बनूँ!!
तुमको छोड़ नहीं सकती,
तुम्हारी खुशियों को अपना नहीं सकती,
तो सोचने पे मजबूर हूँ,
क्या मैंने चाह और क्या पा लिया ?

Sunday, August 21, 2011

एक परिंदा उड़ने चला

एक  परिंदा  उड़ने  चला ,
नीले  गगन  में  उड़ने  चला!!

उंचे  आसमान  में उड़ने चला,
अपने आप में सिमटा  हुआ  चला !!

बादलों  को  छूने  का  ख्वाब  आखों  में बसाये  चला,
सूरज  को छूने की  तमन्ना  लिए  चला!!

दिल  में नीचे गिरने  का दर  बसाये चला,
मेरे  पंख जल  न  जाये  ये  सोचते  हुए  चला!!

एक  परिंदा उड़ने  चला,
नीले गगन में उड़ने   चला!!

Tuesday, August 16, 2011

महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं,


महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं,
कैसा स्वतत्रंता  दिवस और किसका स्वत्रंता दिवस?
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

कैसा १५ अगस्त और कैसी २६ जनवरी ?
कैसा लोकत्रंत है और किसका लोकत्रंत ?
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

सरे आम  हुई लोकत्रंत की हत्या , हो के अन्ना की गिरफ़्तारी
लोकत्रंत का यहाँ सम्मान नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!

शहीदों ने की थी आजादी की कामना,
अपने लोगों की गुलामी को किया था बलिदान नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!

माफ़ करना तुम  इस देश की जनता को,तुम्हारा सपना रहा अधूरा,
आजादी का हुआ सम्मान नहीं,
मिली  स्वत्रंता ऐसी जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार नहीं!!

देश बन गया भ्रष्टाचार का भंडार,स्वत्रंतता अ यहाँ नाम नहीं 
नेता घूम रहे खुले आम लिए घोटालों का भंडार
वहीँ आम आदमी कोजीने का अधिकार  नहीं!!

 स्विस बैंक में नेताओं के  नोटों का भंडार,
आम आदमी के पास  खाने  को अनाज  नहीं,
महात्मा गाँधी के देश में अनशन का अधिकार नहीं!!
     
अन्ना हमको पूरी आजादी दिलाओ जो शहीदों ने चाही, 
जहाँ आम आदमी को अपनी बात कहने का अधिकार मिले 
वर्ना हमको जीने का अधिकार नहीं!!

Sunday, August 14, 2011

एक सुहाना सफ़र



             इस बीच काफी व्यस्तता सी रही , तो ब्लॉग पे आने का ,कुछ लिखने का, कुछ कहने समय ना मिल पाया. आज सोचा कुछ शब्द लिखूंलिखूं उन भावनाओ को जो एक इंसान के मन में शादी करते समय आती हैं. उम्मीद है आप लोगों का समर्थन और स्नेह मुझे मिलेगा, मेरे इस नए सफ़र में . तो इसी उम्मीद  के साथ ब्लॉग में एक हलचल करती हूँ.

एक नया एहसास, कुछ नए अल्फाज,
पल पल हम बढ़ रहे साथ साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

वो सफ़र जो लाया अपने साथ,
कुछ नए लम्हात,कुछ नए एहसास,
कुछ नए दिन और कुछ नयी बात!!

पा कर आप सभी का प्यार,
बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

आँखों में लिए सपने हज़ार,करना है जिनको  साकार,
बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

सामने खडी है एक नयी जिंदगी,
स्वागत को उत्सुक परिवार,ले कर उम्मीदे हज़ार,
बढ़ चले एक नए सफ़र पे , ले कर सबको साथ!!
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

आयीं है नयी खुशियाँ और सपने  हज़ार,
करना है जिनको साकार,
हम बढ़ चले साथ साथ,
एक नयी डगर पे,एक नए सफ़र की ओर!!

सामने खड़े हैं कुछ नए पल,
इंतजार किया जिनका हर पल!!
नए रिश्तों को संजोते हुए
हम बढ़ चले एक नए सफ़र पे, एक नयी डगर की ओर!!

Friday, April 1, 2011

तेरे वास्ते

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
खुशियों से भरे हो तेरे रास्ते,
महफ़िलें सजती रहें तेरे वास्ते!!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
मुस्कराहट तेरे चेहरे पे बस जाये ऐसे,
खुशबू से फूलों का साथ है जैसे!!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
कामयाबी से भरे हों तेरे रास्ते,
खुशियाँ बरसे तेरे वास्ते!!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
कोशिश कामयाबी में बदल जाये तेरे वास्ते
असफलता सफलता में बदल जाये तेरे वास्ते!!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
धरती की गहराइयाँ भी कम  हो तेरी खुशियों के आगे ,
आसमान की ऊँचाइयाँ भी कम हों तेरे सफलता के आगे!!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
दिन के उजाले में तू जगमगाए,
रात के अँधेरे में तू चमचमाए !!

क्या करूँ तेरे वास्ते ?
खुदा से सब कुछ  मांग लूँ  तेरे वास्ते!!
दुआ ये मेरी कुबूल हो जाये,
खुशियाँ तेरे दर पे बरस जाये!!
 

Monday, February 28, 2011

कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो,

बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!

कभी यूँ भी तो हो,

नींद की जब विदाई हो,
सबेरा कुछ और सुहाना सा हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

आसमान कुछ और आसमानी सा हो,
सूरज कुछ और रोशन सा हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

मौसम कुछ दीवाना सा हो,
फिजाओं में कुछ अनजानी महक सी हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!

Thursday, February 24, 2011

क्या लिखूं?

क्या लिखूं?
सच लिखूं  या झूठ का साज सुनाऊं!!

अपने मन का भाव सुनाऊं या चुप  रहूँ,
दुनिया को देखूं और दिखाऊं!!

क्या समझूं ?

उसको बाचूँ जो दिखता है,या उसको समझूँ जो समझाया जाता है1
दुनिया को देखूं, और अलग-अलग बातें सीखूं !!

क्या बताऊ?

अपनी झूटी खुशियाँ दिखलाऊं,
और दुःख का भाव छुपाऊं!!

और क्यूँ न  इन सब से अच्छा करूँ?
क्यूँ न चुप रहूँ !!

इस दोहरेपन को दुनिया की रीत समझूँ ,
ख़ामोशी की आवाज सुनु और सुनाऊं!!

सबकुछ छुपाऊं,
और हंस कर अपना नाम सार्थक करूँ !!

 -हर्षिता   

Thursday, February 17, 2011

लड़का लडकी दोनों, एक सिक्के के दो पहलू जैसे

लड़का लडकी दोनों,
एक सिक्के के दो पहलू जैसे !!

या फिर दोनों,
दिन-रात जैसे !!

जैसे जब रात हो तभी दिन होगा,
एक के बिना दूसरा अधूरा होगा!!

दोनों एक विधाता की कृतियाँ,
प्रदान की गयी जिनको अलग अलग छवियाँ !!

कैसे कोई किसी पे आक्षेप लगाये,
कि उसमे हैं कमियां!!

शायद होती होंगी सबकी अपनी कमियां,
या मिली होंगे अलग अलग शक्तियां!!

लड़का लडकी दोनों,
सदैव रहे अतुलनीय जैसे!!

दोनों सिक्के के दो पहलू जैसे,
दिन रात न हो सकता जैसे!!

लड़का न लडकी हो सकता वैसे,
फिर लडकी लड़का हो सकती कैसे!!

दिन रात दोनों का होना जरुरी जैसे,
लड़का लडकी दोनों का होना जरुरी वैसे!!

लड़का लडकी दोनों,
एक सिक्के के दो पहलू जैसे !!

Tuesday, February 8, 2011

क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं?

क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं ?
क्या इसलिए डरूं?कि मै एक लडकी हूँ,

लेकिन मै न कभी डरी आजतक और न कभी आगे डरूं,
जब आजतक न पाया अंतर कोई तो आगे आने वाले अंतरों से क्यूँ डरूं?

क्यूँ न इतनी सामर्थ्यवान बनूँ,
कि समाज को बदलूँ,

मै बदलूँ और सब कुछ बदल डालूं,
आखिर कौन सी ऐसी कमी मुझ में जो मै डरूं,

क्यूँ न पहुचुं उस ऊंचाई तक ,जहाँ न पहुंचे कभी कोई ,
बादलों तक उड़ जाऊ और आसमान को छु लूँ,

क्या इसलिए डरूं ?
कि मै एक लडकी हूँ,

पर मै न कभी डरूं

क्यूँ कि जो डरे वो न कभी आगे बढे,
पर मै तो हमेशा उन्नति पथ पर चलूँ,

तो क्यूँ न उड़ चलूँ,
आगे बढ़ने का अरमान लिए,

क्यूँ कि रुकना मेरा काम नहीं,
और डरना मेरे पहचान नहीं ,

क्यूँ साहिल के सुकून का इंतजार करूँ,
क्यूँ न समंदर से कश्तियाँ निकलने का मजा लूँ !!

जो की फितरत है मेरी, क्यूँ न इसको कायम रखूं !!
मै बदलूं और समाज को बदल डालूं ,

आखिर क्यूँ डरूं मै और किसलिए डरूं !!

Sunday, February 6, 2011

लड़का लडकी एक समान!!!!

लड़का लडकी एक समान,
क्या इसमे सत्यता रत्ती समान,

बचपन में माता पिता ने किया न अंतर कोई ,
भाव दिया सदैव एक समान,

ज्यों-ज्यों उम्र ने प्रभाव दिखाना किया जारी,
और बुधि ने कम किया भारी,

स्वत: ही आने लगा समझ में,
लड़का लडकी कभी न एक समान,

धीरे धीरे ये अंतर की खाई,
गहराई समुद्र समान,

तभी एक दिन सामने आये जीवन की दूसरी सच्चाई ,
जो सामने खडी थी लिए एक परिवेश नया,

एक नया माहौल,
और कई विचार जो की थे समान और असमान,

पर हमारे समाज में लड़के सदैव अपने मन के राजा समान
और में क्या?

सचमुच क्या?
क्या एक निर्जीव वस्तु समान!!!

कहते हैं बदल गया समाज ,
अब लड़का लडकी एक समान,

लेकिन लड़का लडकी कभी न एक समान,
सदैव रहे असमान,

पर क्या आएगा कोई दिन ऐसा,
जो शायद हो दूसरे स्वतंत्रता दिवस समान,

जिस दिन साथक हो ये शब्द स्वर्णाक्षर समान ,
कि लड़का लडकी एक समान !!!

Friday, January 21, 2011

तारों का टूटना...

इस रंग बदलती दुनिया के रंग कई ,
पर सब की एक धरती और आसमान एक वही ,

ये आसमान रंग बदला अनेक !!!
कभी सुर्ख नीला सा प्यारा ,तो कभी ढका हुआ बादलों में कई ,

कभी देता सूर्य की रोशनी प्यारी ,
तो कभी बरसा देता चाँद की चांदनी न्यारी!!

कभी तारों से भरा देता खुशियाँ कई ,
और जब ढक लेते तारों को बदल कई,
तो देता कालिमा गहरी !!

इन सब के बीच आसमान की ओर टकटकी लगाए ,
बैठे रहते मनुष्य रूपी चातक कई !!

जो की इंतजार में है की तारा टूटे कोई,
ओर कामना पूरी करे उनकी कई!!

पर वो क्या कामना पूरी करे कोई,
जो खुद ही आये दुनिया में नई,
छोड़कर अपनी खुशियाँ कई!!

उसे भी तो होते होंगे दर्द कई,
जब वो छोड़कर आये दुनिया अपनी,
जहाँ उसके इंतजार में बैठे होंगे उसके अपने कई !!

फिर भी हम इंतजार में बैठे रहे कहीं ,
कि टूटेगा तारा कोई !!

लगता तो ये इंतजार उचित नहीं,
परन्तु हम असमर्थ है कर सकने में कुछ कहीं,
क्यूँ कि तारे को टूटना ही होगा कहीं न कहीं !!

ये तो प्यारे विधान है विधि का जरुरी,
कि तारा टूटेगा जरुर कहीं न कहीं !!

Wednesday, January 19, 2011

कुछ विचार

मैं छोटी थी ,
मा के आँचल में सोती थी, पापा की गोद में खेलती थी,
खिलोनो के लिये रोती थी,
और दो मिनट में सबकुछ अपने पास पाती थी!!

मैं क्या चाहती हूँ शायद ये जानती थी ,
नासमझ होते हुये भी खुद को जानती थी,

और अब दुनिया की नज़रों में समझदार होते हुई भी खुद से अनजान
जो की अनजान है अपने आप से, अपने विचारों से !!

तो सोचती हूँ अच्छा क्या?
नासमझ होना या फिर समझदार होना,
पर लगता है नासमझ होना ज्यादा अच्छा !!!

Monday, January 10, 2011

स्वतन्त्रत


गुजर गये है दशक स्वतन्त्रता प्राप्त किये,
हम स्वतन्त्रत है??
पर क्या हम वास्तव मै स्वतन्त्रत है????
नही हम स्वतन्त्रत नही है.

स्वतन्त्रता का झुटा दिखावा करते है.
सही मायनो मे स्वतन्त्रत तो ये पक्षी है.
जिन्हे कोई सरहद रोक नही पाती.
हम तो बस स्वतन्त्रता का दिखावा करते है!!!
बडी बडी बाते करते है, वाद विवाद करते है.
पर हम सब आज भी परतन्त्र है.
हम छुना चाहते है खुले आसमान को ,
पर क्या छु सकते है, नही ना..
ऐसी ही हजारो ख्वाहिशे हर रोज किसे के अन्दर दम तोडती है
पर कभी पूरी नही हो पाती,क्यौकी हम परतन्त्र है..

ये परतन्त्रता सामने आती है
कभी किसी बन्धन के रूप मे, तो कभी पैरो मे पडी बेडियो के रूप मे,
या फिर कभी किसी बडे के लिहाज के रूप मे, या फिर किसी को दिये वचन के रूप मे,

तो हम कैसे स्वतन्त्रत हो सकते है!!!
हम तो बस स्वतन्त्रता का दिखावा करते है,
कि हम स्वतन्त्रत है.

किन्तु परतन्त्र होने मे योगदान किसका है?
मेरा खुद का, या मेरी आकन्क्षाओ का??
शायद मेरा ही होगा......
फिर भी मान लेते है कि हम स्वतन्त्रत है!!!!!