Monday, February 28, 2011

कभी यूँ भी तो हो

कभी यूँ भी तो हो,

बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!

कभी यूँ भी तो हो,

नींद की जब विदाई हो,
सबेरा कुछ और सुहाना सा हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

आसमान कुछ और आसमानी सा हो,
सूरज कुछ और रोशन सा हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

मौसम कुछ दीवाना सा हो,
फिजाओं में कुछ अनजानी महक सी हो!!

कभी यूँ भी तो हो,

बंद पलकों में सपने हों,
और खुलती आँखों में अपने हों!!

4 comments:

  1. कोमल अहसासों से परिपूर्ण एक बहुत ही भावभीनी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! बहुत सुन्दर एवं भावपूर्ण प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  2. बंद पलकों में सपने हों,
    और खुलती आँखों में अपने हों!!

    Kya khayal hai...apke udgaar dil se hain isliye sateek aur sarthak...bhavpoorna bhi.

    Likhti rahiye.

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  3. बहुत खूबसूरत रचना| धन्यवाद|

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