एक परिंदा उड़ने चला ,
नीले गगन में उड़ने चला!!
उंचे आसमान में उड़ने चला,
अपने आप में सिमटा हुआ चला !!
बादलों को छूने का ख्वाब आखों में बसाये चला,
सूरज को छूने की तमन्ना लिए चला!!
दिल में नीचे गिरने का दर बसाये चला,
मेरे पंख जल न जाये ये सोचते हुए चला!!
एक परिंदा उड़ने चला,
नीले गगन में उड़ने चला!!
नमस्कार जी,
ReplyDeleteये कविता बहुत पसंद आयी है,
achha hai y
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